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मणिपुर संकट

मिनाक्षी गोयल

मणिपुर जल रहा है, चारों तरफ़ हिंसा हो रही है। आए दिन दिल दहलाने वाले वीडियो देखने को मिलते हैं।
आख़िर मणिपुर में यह क्यों हो रहा है? इसे सरल भाषा में जानने की कोशिश करते हैं।
मणिपुर राज्य में दो क्षेत्र है-एक घाटी क्षेत्र और दूसरा पहाड़ी क्षेत्र
मणिपुर की लगभग 90% ज़मीन पहाड़ी क्षेत्र है और लगभग 10% ज़मीन में घाटी है।

मणिपुर में मुख्यतः तीन जन जातियाँ है-मैतेई, कुकी और नागा। मणिपुर की कुल जनसंख्या का लगभग 60% मैतेई जन जाति है,जो सिर्फ़ 10% वाले घाटी क्षेत्र में रहती है और यह मुख्यतः हिन्दू धर्म को मानने वाले हैं। इस राज्य में बाक़ी 40% जनसंख्या मुख्यतः नागा एवं कुकी जनजाति की है जो ईसाई धर्म को मानती है और जो 90% वाले पहाड़ी क्षेत्र में रहती है।

मणिपुर में फैली हिंसा के मुख्यतः दो कारण हैं-

पहला इस वर्ष फ़रवरी में राज्य की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी सरकार के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने यह निर्णय लिया कि वह मणिपुर के जंगलों को सुरक्षित करना चाहते हैं अतः उन्हें चुराचांदपुर(Churachandpur) ज़िले के कुछ गांवों को विस्थापित करना पड़ेगा। इस गाँव में मुख्यतः कुकी समुदाय के लोग रहते थे। गाँव वालों का कहना था कि उन्हें बिना किसी पूर्व सूचना के उनके घरों से निकाल दिया गया और यह आदेश उनकी पूरी कुकी समुदाय के खिलाफ़ है। अतः मार्च में इस आदेश के ख़िलाफ़ इन गाँव के लोगों ने शांतिपूर्वक विरोध रैली निकाली। उधर सरकार का कहना था कि उन्होंने संबंधित सरकारी विभागों द्वारा संरक्षित वन क्षेत्र (Protected forest region) का भूमि सर्वेक्षण (land Survey ) कराया था और यह गाँव उस क्षेत्र में आ रहे थे। यही नहीं ये गाँव वाले ग़ैर क़ानूनी रूप से इन संरक्षित जंगलों की ज़मीन पर अफ़ीम की खेती कर रहे थे। अतः उनका यह विरोध असंवैधानिक है।

हिंसा का दूसरा कारण था जब मणिपुर उच्च न्यायालय (Manipur High Court) ने मणिपुर की राज्य सरकार को यह निर्देश दिया कि वह केंद्रीय जनजातीय मामलो के मंत्रालय (Union Ministry of Tribal Affairs) को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (scheduled Tribes) का दर्जा मिलने के पक्ष में सिफ़ारिश भेजे, किंतु पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाली कुकी एवं नागा जन जातियाँ  मैतेई जन जाति को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के ख़िलाफ़ हैं।

इन निर्णयों के विरोध में कुछ आदिवासी नेताओं ने आठ घंटे के बंद का आयोजन किया। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को एक जिम का उद्घाटन एवं एक रैली को संबोधित करने जाना था। प्रदर्शनकारियों ने उस जिम में आग लगा दी और रैली में तोड़फोड़ की। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हाथापाई हुई और हिंसा शुरू हो गई।

मैतेई समुदाय में अनुसूचित जनजाति का दर्जा लेने की माँग 2013 से चल रही है। उनका मानना है कि उन्हें अपनी ज़मीन एवं संस्कृति की रक्षा के लिए इस दर्जे की ज़रूरत है क्योंकि बांग्लादेश एवं म्यांमार से आने वाले अवैध प्रवासी (illegal immigrants) उनकी ज़मीनें हड़प रहे हैं एवं उनकी संस्कृति को समाप्त कर रहे हैं, और उनके अपने ही राज्य में उनकी जनसंख्या धीरे धीरे कम होती जा रही है। इसके अतिरिक्त 1949 से पहले औपनिवेशिक सरकार (Colonial Government) द्वारा उनको यह दर्जा मिला हुआ था जिसे 1949 में उस समय की सत्तारूढ़ सरकार ने वापस ले लिया था।मैतेई लोगों का यह भी कहना है कि यह अनुचित है कि कुकी और नागा, घाटी में ज़मीन खरीद सकते हैं जबकि मैतेई पहाड़ी क्षेत्र में ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि कानून ने इस पर रोक लगायी हुई है। उन्हें इम्फाल घाटी तक ही सीमित कर दिया गया है, जो मणिपुर के कुल भौगोलिक क्षेत्र का केवल 10% है। उनका कहना है कि मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा मिलने से जमीन खरीदने और बेचने पर यह प्रतिबंध हट जाएगा, जिससे घाटी और पहाड़ियों के बीच अधिक एकीकरण होगा। इसके अतिरिक्त वे यह यह भी मानते हैं कि अगर उनको यह दर्जा मिल भी जाता है तो इससे कुकी एवं नागा जन जातियों को कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

दूसरी ओर कुकी एवं नागा जनजातियों का कहना है कि मैतेई समुदाय बहुमत में है। यह समुदाय पहले से ही ज़्यादा पढ़ा लिखा,सशक्त एवं ताक़तवर है। यही नहीं मैतेई लोगों की मातृभाषा मणिपुर की आधिकारिक भाषा (official language) है यह भारत की 22 अनुसूचित भाषाओं (scheduled languages) में से एक है। अतः अगर इन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलता है तो कुकी एवं नागा जनजातियों की राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति और ख़राब हो जाएगी। उनका कहना है कि मणिपुर में 60 निर्वाचन क्षेत्र है। मैतेई समुदाय की जनसंख्या ज़्यादा होने के कारण 40 निर्वाचन क्षेत्र मैतेई बहुल क्षेत्रों में हैं और 20 कुकी एवं नागा बहुल क्षेत्रों में है। इसका अर्थ है कि मैतेई समुदाय के लिए सत्ता में रहना ज़्यादा आसान है और इसी लिए अधिकांशतः सत्तारूढ़ पार्टी मैतेई समुदाय से होती है और अगर उनके पास पहले से ही इतनी राजनैतिक शक्ति है तो उन्हें अनुसूचित जन जाति के दर्जे की क्या ज़रूरत है। इसके अतिरिक्त मैतेई समुदाय के कुछ खंडों को पहले से ही अनुसूचित जाति (schedule, caste) एवं अन्य पिछड़ा वर्ग (other backward classes) का दर्जा प्राप्त है।

मणिपुर का इतिहास भी मणिपुर की वर्तमान समस्याओं से गहरा जुड़ा है अतः मणिपुर के इतिहास को जानना भी आवश्यक है।

मैतेई समुदाय ने सदियों से मणिपुर की घाटी पर शासन किया है। कुकी एवं नागा जनजातियाँ भी मणिपुर की पहाड़ियों पर सदियों से रहती आयी हैं, जिनकी अपनी एक अलग संस्कृति एवं भाषा है। इन समुदायों के बीच पुराने समय से एक जटिल संबंध है। मैतेई राज्य के राजाओं ने अनेकों बार पहाड़ों पर रहने वाली जनजातियों के खिलाफ सैनिक अभियान चलाए थे ताकि वह अपने राज्य को और बड़ा कर सकें। इसलिए इन समुदायों के बीच हिंसा सदियों से चली आ रही है।

अनेकों बार इन समुदायों के बीच व्यापारिक समझौते एवं सामंजस्य भी रहा। एक ओर जहां मैतेई राज्य को इन जनजातियों से पहाड़ी सामान एवं वस्तुएँ मिलती थी,वहीं दूसरी ओर मैतेई राजा इनको बाहरी लोगों से सुरक्षा देता था।

1819 में बर्मा राज्य ने मणिपुर पर आक्रमण किया और मैतेई राज्य को हार झेलनी पड़ी। मैतेई लोगों पर दबाव डाला गया कि वह बर्मी संस्कृति और बौद्ध धर्म को अपनाएं। पहाड़ी जनजातियों पर भी बर्मी राजाओं ने अनेक सैन्य अभियान चलाये और उनके गाँवों को तहस नहस किया।इस दौरान मणिपुर तबाह हो गया था और हर जगह अराजकता थी। बर्मी सेनाओं के अत्याचारों का यह सिलसिला सात वर्षों(1819-1826) तक चला ।इस अंधेरे काल को मणिपुरी भाषा में “चाही तारेत खुंटाकपा” (सात साल की तबाही- seven years of devastation) कहा जाता है ।

1824-1826 में प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध (First Anglo-Burmese War) हुआ जिसके पश्चात मणिपुर पर अंग्रेज़ों का क़ब्ज़ा हो गया। अंग्रेज़ों के आने के बाद मणिपुर में राजनैतिक एवं आर्थिक परिवर्तन आया।1891 में अंग्रेज़ों द्वारा इसे एक प्रिंस्ली स्टेट (Princely state) बना दिया गया।

मणिपुर में भी अंग्रेज़ों ने अपनी नीति “फूट डालो और राज करो” (divide and rule) को अपनाया और इन समुदायों के बीच के मतभेदों को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया। अंग्रेज़ अपनी प्रशासनिक प्रणालियों, भूमि मुद्दों के ज़रिये जानबूझ कर एक जन जाति को दूसरी जनजाति की तुलना में अधिक महत्व देते थे और उनके बीच शत्रुता और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देते थे। इससे इन समुदायों के बीच विभाजन और गहरा होता चला गया। इससे मैतेई, कुकी एवं नागा समुदायों के बीच प्रतिद्वंद्विता और संदेह की ऐसी भावना पैदा हुई जो भारत को आज़ादी मिलने के बाद भी बनी रही।

जब भारत आज़ाद हुआ उस समय मणिपुर पर महाराजा बोध चंद्र (Buddhachandra) का राज था। अन्य प्रिंस्ली स्टेट(Princely state) की भाँति मणिपुर के राजा को भी यह निर्णय लेना था कि वह भारत के साथ मिलना चाहते हैं, पाकिस्तान के साथ मिलना चाहते हैं अथवा स्वतंत्र रहना चाहते हैं। महाराजा बोध चंद्र ने स्वतंत्र रहने का निर्णय लिया। मणिपुर भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी सीमा म्यांमार देश से मिलती है और इसके अतिरिक्त मणिपुर में साम्यवादी आंदोलन शुरू होने लगा था जो भारत में भी अस्थिरता पैदा कर सकता था।अतः भारत सरकार चाहती थी कि मणिपुर स्वतंत्र न रहकर भारत का भाग बने। सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से भारत इसमें सफल रहा और 1949 में मणिपुर के राजा ने विलय समझौते (merger agreement) पर हस्ताक्षर किए जिससे मणिपुर भारत में शामिल हो गया।1956 में वह केंद्रशासित प्रदेश (Union territory) और 1972 में एक राज्य बन गया।

मणिपुर के अनेक लोग उनके राज्य के भारत में विलय से ख़ुश नहीं थे। मणिपुर के भारत में विलय से पहले वहाँ के लोग महाराजा बोध चंद्र के ख़िलाफ़ विद्रोह कर रहे थे क्योंकि वह अपने राज्य में राजशाही की जगह प्रजातंत्र चाहते थे। महाराजा बोध चंद्र को उनकी माँग के आगे झुकना पड़ा और संविधान निर्माण समिति (constitution making committee) बनायी गई।1949 में जब मणिपुर के राजा ने विलय समझौते पर हस्ताक्षर किए तो लोगों में यह विक्षोभ था कि इस निर्णय को समिति की सहमति के बिना भारत सरकार के दबाव में आकर लिया गया। अतः भारत से स्वतंत्रता के लिए इस राज्य में अनेक बार विद्रोह एवं हिंसक घटनाएँ हुईं ।

यही नहीं मणिपुर में हर जातीय समूह की अपनी अलग अलग माँग है। उदाहरण के लिए नागा समुदाय चाहता है कि मणिपुर, आसाम और अरुणाचल प्रदेश के कुछ भाग नागालैंड के साथ जुड़ जाए, कुकी चाहते हैं कि मणिपुर ही नहीं बल्कि नागालैंड, त्रिपुरा, आसाम, मिज़ोरम यहाँ तक कि बांग्लादेश और म्यांमार के भी जिन हिस्सों में कुकी समुदाय हैं, वह सब मिलकर कुकीलैंड(Kukiland) बन जाये, वहीं मैतेई का कहना है कि हम मणिपुर पर सदियों से शासन करते हैं आये हैं अतः इस राज्य पर सबसे पहले अधिकार हमारा है।

इसके अतिरिक्त कुकी एवं नागा समुदायों में भी आपस में समय समय पर हिंसक घटनाएँ होती रहती हर समुदाय ने अपनी अपनी विद्रोही सेनाएँ (insurgent groups) बनायी हुई है। उदाहरण के लिए एक और जहाँ एनएससीएन-आईएम (NSCN-IM- National Socialist Council of Nagalim-Isak-Muivah) नागाओं का विद्रोही समूह (insurgent group) है, वहीं कुकी राष्ट्रीय सेना (Kuki National Army),कुकी राष्ट्रीय संगठन (Kuki National Organisation), कुकी-चिन राष्ट्रीय सेना (Kuki-Chin National Army-KNA) जिसमें बांग्लादेश एवं म्यांमार से आए चिन-कुकी उग्रवादी भी शामिल हैं आदि कुकी समुदाय के विद्रोही समूह है। यह सभी विद्रोही समूह अपने समुदाय की रक्षा की आड़ में दूसरे समुदाय के लोगों पर अत्याचार एवं उनकी हत्या करते रहते हैं।

इस प्रकार इन्ही सब मुद्दों के कारण वर्षों से इन समुदायों के बीच आपस में एवं भारत सरकार के साथ टकराव चलता आ रहा है। इस टकराव को कुकी समुदाय के लोगों से गाँव ख़ाली कराने और मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की सिफ़ारिश ने और हवा दे दी ।

मणिपुर क्षेत्र में चल रहे संघर्ष के कारण वहाँ के लोगों को असीम पीड़ा से गुज़रना पड़ रहा है।यदि मणिपुर स्थायी शांति चाहता है और अपनी क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना चाहता है, तो यह सभी समुदायों के लिए अनिवार्य है कि वे अपनी अनुचित माँगो को समाप्त करें। अपने अड़ियल और कठोर रुख से पीछे हटें और समझौते की दिशा में काम करें। साथ ही सभी राजनीतिक दलों को अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर और मिल जुलकर इस प्रदेश के लिए शांति समाधान ढूंढने का प्रयास करना चाहिए।

लेखक के बारे में:

मिनाक्षी गोयल की उच्च शिक्षा विज्ञान में हुई। विज्ञान के साथ साथ हमेशा से ही उनकी रुचि साहित्य, संस्कृति एवं विभिन्न देशों के बारे में गहराई से जानने एवं समझने में भी रही। इन्होंने चीन पर “द रेपिड राइज़ ऑफ़ चाइना” नामक एक पुस्तक लिखी है, जो चीन के पिछले सौ वर्षों की मुख्य घटनाओं को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करती है और चीन के असाधारण विकास के कारणों को बताती है। सामाजिक मुद्दों पर लिखी गई इनकी कविताएँ एवं लेख समय समय पर अनेक समाचार पत्रों एवं प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद (ICCR) आदि में प्रकाशित होते रहते हैं।

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