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संयुक्त राष्ट्र : 21वीं सदी में भारत की प्रासंगिकता

Sukhdev Vashist, 4th Estate News
सुखदेव वशिष्ठ

वसुधैव कुटुंबकम की सोच वाला विश्व का सबसे बड़े लोकतंत्र भारत विश्व की 18% से ज्यादा जनसंख्या का प्रतिनिधत्व करता है। इस वर्ष 75 वर्ष पूरे कर चुकी संयुक्त राष्ट्र संस्था, जो कि सदस्य देशों में पारस्परिक सहयोग, शान्ति और मित्रतापूर्ण व्यवहार के प्रमुख उद्देश्यों को लेकर आगे बढ़ने हेतु बनाई गयी थी, की प्रासंगिकता को 21वीं सदी वर्तमान और भविष्य आवश्यकताओं और चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में अप्रैल 2020 में न्यूयार्क टाइम्स ने संयुक्त राष्ट्र के सबसे शक्तिशाली सह संगठन सुरक्षा परिषद के बारे में लिखा कि “जब विश्व की बहुत बड़ी आबादी लॉक डाउन में है और हमारे सामने वैश्विक सुरक्षा का सबसे बड़ा मुद्दा सामने है तो सुरक्षा परिषद कुछ भी करने में असमर्थ है।” यह आलोचना भी ह्यूमन राइट्स वाच के निदेशक लुई कारबोन्यू ने की थी। इस वैश्विक महामारी का कारण समझे जाने वाले देश चीन पर कोई भी कार्यवाई हेतु संयुक्त राष्ट्र की तरफ से कोई प्रयास नहीं हुए हैं। इसी तरह जब मुस्लिम शरणार्थियों- ईराक, ईरान, दक्षिण सूडान, सीरिया, यमन, यूक्रेन और रोहिंगीया की बात होती है, तो यह वैश्विक संस्था उनके मानवाधिकारों की चिंता करती है लेकिन जब स्वीडन में सितम्बर में मुस्लिम शरणार्थियों द्वारा दंगे किये गये तो संयुक्त राष्ट्र द्वारा कोई संज्ञान नहीं लिया गया। संयुक्त राष्ट्र के वैचारिक भ्रष्टाचार का स्तर व्यापक क्षेत्रों में फैला हुआ है। जब कोरोना महामारी चीन से निकल कर बाहर फैलने लगी तो विश्व स्वास्थय संगठन ने कई दिन तक इस को छुपाए रखा। इसीलिये भारत सहित अन्य देशों की तरफ से इस वैश्विक संस्था की व्यवस्था में बदलाव की आवाज उठने लगी है।इसी तरह भूत काल में भी बांग्लादेश के गठन के समय हिंदुओं के नरसंहार और पाकिस्तान में वर्तमान में अल्पसंख्यकों के ऊपर हो रहे अत्याचारों को ले कर भी संयुक्त राष्ट्र रहस्यमय तरीके से चुप है। इसी तरह कहने को तो तृतीय विश्वयुद्ध नहीं हुआ, पर अनेकों युद्ध हुए, गृह युद्ध हुए, आतंकी हमलों ने दुनिया को थर्रा कर रख दिया, खून की नदियां बहती रहीं। इन हमलों में जो मारे गए वो लाखों मासूम बच्चे, जिन्हें दुनिया पर छा जाना था, वो दुनिया छोड़कर चले गए। कितने ही लोगों को अपने जीवन भर की पूंजी गंवानी पड़ी, घर छोड़ना पड़ा।संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था, प्रक्रिया में बदलाव आज समय की मांग है। भारत के लोग संयुक्त राष्ट्र के रिफॉर्म को लेकर चल रही प्रक्रिया के पूरा होने का लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। आखिर कब तक भारत को संयुक्त राष्ट्र के निर्णय लेने वाले ढांचे से बाहर रखा जाएगा।

सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी दावेदारी के पक्ष में तर्क

भारत, 1.3 बिलियन आबादी के साथ , दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। भारत विश्व की उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति है। वैश्विक स्तर पर भारत के बढ़ते आर्थिक कद ने भारत के दावों को और मज़बूत किया है। मौजूदा समय में भारत विश्व की छठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसके अलावा पीपीपी पर आधारित जीडीपी की दृष्टि से भारत विश्व की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है।भारत को अब विश्व व्यापार संगठन, ब्रिक्स और जी-20 जैसे आर्थिक संगठनों में सबसे प्रभावशाली देशों में गिना जाता है। भारत की विदेश नीति ऐतिहासिक रूप से विश्व शांति को बढ़ावा देने वाली रही है।

भारत ने हमेशा विश्वकल्याण को ही प्राथमिकता दी है। हमने शांति की स्थापना के लिए 50 शांति स्थापना अभियान में अपने जांबाज भेजे हैं और शांति की स्थापना में अपने सबसे ज्यादा वीर सैनिकों को खोया है। भारत ने हमेशा पूरी मानव जाति के हित के बारे में सोचा है ना कि अपने निहित स्वार्थों को बारे में। भारत की नीतियां हमेशा इसी दर्शन से प्रेरित रही हैं। नेबरहुड फर्स्ट से लेकर एक्ट ईस्ट पॉलिसी तक, इंडो-पैसेफिक के प्रति हमारे विचार में इस दर्शन की झलक दिखाई देती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के शब्दों में “भारत जब किसी से दोस्ती का हाथ बढ़ाता है तो वो किसी तीसरे के खिलाफ नहीं होती। भारत जब विकास की साझेदारी मजबूत करता है तो उसके पीछे किसी साथी देश को मजबूर करने की सोच नहीं होती है।” भारत विश्व कल्याण हेतु अपनी विकास यात्रा से मिले अनुभव साझा करने में कभी पीछे नहीं रहता है।महामारी के मुश्किल समय में भी भारत की फार्मा इंडस्ट्री ने 150 देशों को दवाइयां भेजी हैं। भारत की आवाज हमेशा शांति ,सुरक्षा और समृद्धि के लिए ही उठी है। भारत की आवाज मानवता, मानवजाति और आतंकवाद, अवैध हथियारों की तस्करी के खिलाफ रही है। रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांसफॉर्म के मंत्र के साथ भारत ने करोड़ों भारतीयों के जीवन में बड़े बदलाव लाने का काम किया है। ये अनुभव विश्व के बड़े देशों के लिए भी उपयोगी हैं। 4-5 साल में 400 मिलियन से ज्यादा लोगों को बैंकिंग सिस्टम से जोड़ना, सिर्फ 4-5 साल में 600 मिलियन लोगों को खुले में शौच से मुक्त करना, 2-3 साल में 500 मिलियन से ज्यादा लोगों को मुफ्त इलाज से जोड़ना मामूली काम नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता निश्चित तौर पर भारत के विश्व गुरू बनने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास होगा। स्थायी सदस्यता भारत को विश्व में अपना सनातन “वसुदैव कुटुम्बकम” संदेश संपूर्ण मानवता तक पहुंचाने में सहजता प्रदान करेगा और निश्चित ही संपूर्ण मानवता को आनंदपूर्ण जीने की राह दिखाएगा। अतः संयुक्त राष्ट्र में 21 वीं शताब्दी की जरूरतों के अनुसार सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिये सभी देशों को भारत से सहयोग करना चाहिये। हमें भी और अधिक गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है।

सुखदेव वशिष्ठ एक लेखक, चिंतक और विचारक हैं।

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