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एक पुत्र की पिता को अंतिम विदाई…

4th estate News
संदीप मित्तल, आईपीएस

पिताजी सरकारी नौकरी में होने के कारण 1962 वर्ष में ही गांव छोड़कर दिल्ली में आकर बस गए थे । विद्यार्थी काल में अपने बड़े भाई के साथ रहकर अध्ययन किया तत्पश्चात दिल्ली में ही सरकारी नौकरी ज्वाइन की। हम लोग निम्न मध्य वर्ग परिवार, जोकि दिल्ली में बहुतायत में पाया जाता है, से संबंधित थे और अपने परिवार में निजी स्कूलों में शिक्षा पाने वाले शायद प्रारंभिक पीढ़ी से थे। प्राइमरी स्कूल की शिक्षा दिल्ली के शक्ति नगर इलाके में रविंद्रा मांटेन्सरी स्कूल,जोकि भाई साहब के स्कूल के नाम से जाना जाता था, में ग्रहण की। पांचवी कक्षा में तय हुआ कि दिल्ली राज्य का सबसे बेहतर स्कूल, जो कि शक्ति नगर नंबर वन के नाम से जाना जाता था, उसमें भर्ती प्रक्रिया के परीक्षण की तैयारी की जाए। हमारे पिताजी के एक गहन मित्र गुप्ता जी, जोकि सरकारी स्कूल में वरिष्ठ अध्यापक थे, उन्होंने सहज ही यह जिम्मेदारी स्वीकार की। मैं लगभग हर रोज उनके साथ उनके विद्यालय में जाता और वहां अलग-अलग विषय के कई अध्यापकों ने मुझे प्रवेश परीक्षा की तैयारी में मदद की। गुप्ता जी दिल से बहुत अच्छे व्यक्ति थे और पूरा मन लगाकर मेरी तैयारी करवा रहे थे। परंतु कभी-कभी वह गुस्से में आकर मुझे जब डांटते थे तो बहुत बुरा लगता था और मन में आता था कि कल से गुप्ता जी के साथ उनके स्कूल नहीं जाऊंगा। परंतु परिवार की इच्छा और जीवन में कुछ करने की ललक के कारण मैंने गुप्ता जी के साथ उनके स्कूल जाना नहीं छोड़ा। वैसे गुप्ता जी मेरा मन लगाए रखने के लिये मुझे विद्यालय में कई प्रकार के व्यंजनों एवं कुल्फी फालूदा आदि खिलाते थे। निर्धारित तिथि पर प्रवेश परीक्षा दी और मेरी परीक्षा ठीक-ठाक ही हुई थी। लगभग 1 महीने के बाद जब प्रवेश परीक्षा के नतीजे निकाले गए तो मैं अपनी माता जी के साथ अपने नतीजे देखने के लिए विद्यालय गया। वहां सूची में अपना नाम ना देख कर बहुत हताश हुआ और बुझे मन से वापस लौटने लगे। जब हम विद्यालय से निकल रहे थे तो विद्यालय के उप प्रधानाचार्य, जो मेरे ताऊ जी के साथ पहले अध्यापक थे, उन्होंने हमें देख लिया। देखते ही उन्होने आवाज लगाई और बोले आपको शक्तिनगर नंबर वन में प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने की बहुत-बहुत बधाई। हमें लगा कि वह हमारा मजाक बना रहे हैं। माताजी ने उन्हें बताया कि इसका तो लिस्ट में नाम ही नहीं है और आप हमें बधाई दे रहे हैं? तब उन्होंने कहा की आप क्या बात करते हैं इस विद्यार्थी का नाम ऊपर से अंग्रेजी माध्यम के लिस्ट में तीसरे नंबर पर है और इस विद्यार्थी ने अपनी चॉइस भरते हुए इंग्लिश मीडियम की चॉइस नहीं भरी थी परंतु जब इस विद्यार्थी का अंग्रेजी का पर्चा जांचा गया तो पाया गया कि इस विद्यार्थी को अंग्रेजी मीडियम में ही भर्ती दी जाए क्योंकि उसमें यह कुछ आगे करने की स्थिति में होगा ।हमने बड़ा प्रोटेस्ट किया कि जब हमने अंग्रेजी माध्यम का विकल्प ही नहीं दिया था तो हमें अंग्रेजी माध्यम की कक्षा में क्यों एडमिशन दिया जा रहा है। परंतु स्कूल के सभी अध्यापक एकमत थे कि इस बच्चे को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाया जाए। खैर सभी के दवाब में आकर मैंने अंग्रेजी माध्यम में दाखिला लिया।

थोड़ी मेहनत तो अवश्य करनी पड़ी परंतु एक वर्ष बिल्कुल ठीक-ठाक निकला और मैं सातवीं कक्षा में पहुंचा। अब कुछ लड़कों से जान पहचान होनी शुरू हुई और संगत बिगड़ गई जिसके कारण मैंने पढ़ाई लिखाई पर ध्यान देना बंद कर दिया और सातवीं कक्षा में फेल हो गया। घर में माता जी का रो रो कर बुरा हाल था और उन्होंने मेरे पिताजी पर काफी दबाव बनाया कि आप दिल्ली प्रशासन में एक बड़े अधिकारी हैं और मेरा एडमिशन किसी भी विद्यालय में आठवीं कक्षा में करवा दें। पिताजी भी दुखी थे परंतु उन्होंने कहा कि यदि इस बच्चे को पढ़ना है तो वह इसी कक्षा में और इसी विद्यालय में पढ़े अन्यथा इसे पढ़ने की आवश्यकता ही नहीं है। मैं उसी विद्यालय में सातवीं कक्षा में फिर से एडमिशन लेकर पढ़ने लगा। कक्षा के सभी लोग मुझे फेलियर कहकर चिढ़ाते थे। परंतु मैंने कभी उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और पढ़ाई लिखाई में अपना मन लगाया। सितंबर के महीने में टर्म एग्जाम के बाद जब परीक्षा के नतीजे आये तो हमारे विज्ञान के अध्यापक ने पूछा कि जो विद्यार्थी ऊपर के 5 रैंक में आए हैं वे खड़े हो जाएं। जब उन पांच विद्यार्थियों के साथ मैं भी खड़ा हुआ तो उन अध्यापक ने मुझे झिड़कते हुए कहा कि तुम बैठ जाओ। मैंने नीचे से पांच नहीं ऊपर से 5 रैंक वाले विद्यार्थियों को खड़े होने के लिए कहा है। मैंने जब उन्हे बताया कि मैं ऊपर के 5 में ही हूं तो उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। इस घटना के बाद मेरा मनोबल काफी बढ़ा पर मैंने पढ़ाई लिखाई में अपना ध्यान लगाने के साथ-साथ बास्केटबॉल भी खेलना शुरू किया और उसमें भी अपने स्कूल टीम का कप्तान रहा। दसवीं की परीक्षा में और 12वीं की परीक्षाओं में मैं अच्छे नंबरों से पास हुआ और बोर्ड की मेरिट लिस्ट में भी मेरा नाम रहा।

Late Sh. K.C Mittal
एक पुत्र के पिता के साथ गुजारे कुछ पल

अब बारी आई जीवन के अगले पड़ाव – कॉलेज में एडमिशन की। अपनी पूरी कोशिश के बाद भी मैं मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं पा सका और उसके कई कारण थे। पिताजी के दफ्तर में उनके एक वरिष्ठ अधिकारी ने सलाह दी कि दिल्ली विश्वविद्यालय में भूगर्भ विज्ञान में स्नातक की उपाधि मिलती है उसमें अपने बेटे का एडमिशन करा दो। हमें दिल्ली विश्वविद्यालय में बीएससी ऑनर्स जियोलॉजी में एडमिशन मिला और बाद में पता चला की भूगर्भ शास्त्र विभाग में काफी विद्यार्थी बिना नौकरी के घूमते हैं। किंतु एडमिशन ले लिया था और परिवार बहुत अधिक फीस आदि का खर्चा वहन नहीं कर सकता था तो हमने उसी कोर्स में अपना पढ़ाई लिखाई का कार्यक्रम जारी रखा। लोगों को नौकरी क्यों नहीं मिली इस विषय का तो मुझे ज्ञान नहीं हुआ परंतु भूगर्भ शास्त्र को पढ़ने, समझने और प्रयोग करने में असाधारण आनंद आया। भूगर्भ शास्त्र विभाग में अपनी 6 वर्षों की पढ़ाई के दौरान मैं विज्ञान स्नातक और विज्ञान निष्णांत की पढ़ाई के दौरान विश्वविद्यालय में सदैव प्रथम स्थान पर रहा। इसके अलावा पढ़ाई के साथ साथ हम लोग छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे जिस कारण जब प्रथम स्थान विजेता के रूप में मुझे पुरस्कार लेने के लिए मंच पर हर वर्ष आमंत्रित किया जाता था तो कुछ समय तक तालियां नहीं बजती थी यह सोच कर कि शायद गलत नाम बोल दिया गया है। फिर धीरे-धीरे सभी को समझ आने लगा की नाम तो सही ही है। जो छात्र मुझसे दो या तीन नंबर कम लेकर विश्वविद्यालय में दूसरे स्थान पर आता था वह सदा ही मुझसे नाराज रहता था।

दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ते समय तक हम दिल्ली के होने के कारण हम लोगों को सिविल सर्विसेज के विषय में ना तो बहुत अधिक जानकारी थी न ही परीक्षा देने का बहुत शौक था। परंतु 90% से अधिक विद्यार्थी बिहार से होने के कारण सभी सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी करते नजर आते थे।

मेरे कुछ आदरणीय अध्यापकों जैसे सर्वश्री प्रोफेसर संपत टंडन, प्रोफेसर प्रेम स्वरूप सकलानी, प्रोफेसर विजयानंद शर्मा, प्रोफेसर चंद्रशेखर दुबे जी आदि ने मेरा मनोबल बढ़ाने में बहुत मदद की। दिल्ली विश्वविद्यालय का टॉपर होने के कारण मैंने भूगर्भ शास्त्र में ही विद्या वाचस्पति की उपाधि लेने के लिए ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में आवेदन किया और कैंब्रिज नेहरू फेलोशिप के लिए मुझे शॉर्टलिस्ट किया गया। इस समय मन में काफी कशमकश थी कि विदेश जाकर विद्यावाचस्पति की पढ़ाई करूं या देश में रहकर अपने परिवार और माता पिता का सहयोग करूँ। मेरे माता-पिता ने कभी भी मुझे कोई भी गतिविधि चाहे वह शैक्षणिक हो अथवा गैर शैक्षणिक हो करने से नहीं रोका। बाहरी तौर पर उन्होंने मुझे विदेश जाने के लिए पूरी तरह प्रोत्साहित किया। परंतु पारिवारिक परिस्थितियों को समझते हुए मेरे मन में भी कहीं थोड़ी सी चिंता थी की इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि विदेश से वापस लौटने के बाद भारतवर्ष में मुझे कहीं नौकरी मिल जाएगी। दिल्ली विश्वविद्यालय में ही कई विद्यार्थी जो विदेश से पीएचडी करके लौटे थे बेरोजगार घूम रहे थे। इन सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मैंने तय किया कि मैं विदेश नहीं जाऊंगा और देश में रहकर ही अपने परिवार का सहयोग करूंगा।

यह वह क्षण था जब मैंने तय किया की मैं सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करूंगा। मैंने अगले दिन सुबह माता जी को बताया कि मैंने इंग्लैंड जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया है और अब मैं यहीं रहूंगा और उनसे कहा कि वह मुझे एक साल के लिए बिल्कुल अकेला छोड़ दें ताकि मैं जो करना चाहता हूं वह कर सकूं। मैंने माता जी को बताया कि मैं सिविल सेवा परीक्षा देना चाहता हूं परंतु आप यह बात किसी को ना बताएं।

एक वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद मैंने भारतीय सिविल सेवा परीक्षा दी और जून के महीने में कड़ी गर्मी के दौरान जब मैं अगली सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी कर रहा था तो अचानक मुझे पता चला की सिविल सर्विसेज का परिणाम घोषित कर दिया गया है। उन दिनों इंटरनेट आदि की व्यवस्था नहीं होती थी और लिस्ट यू.पी.एस.सी.  के प्रांगण में नोटिस बोर्ड पर लगाई जाती थी या साप्ताहिक एंप्लॉयमेंट न्यूज़ रोजगार समाचार में उसे छापा जाता था। मैंने माता जी से कहा कि रिजल्ट घोषित हो गया है और मैं अपना रिजल्ट देखने जा रहा हूं मैंने अपना दुपहिया उठाया और तपती दोपहरी में एक घंटे का सफर तय कर यूपीएससी पहुंचा। उत्तीर्ण परीक्षार्थियों की लिस्ट में अपना नाम नीचे से देखना शुरू किया और ऊपर से पहले पेज तक पहुंचते-पहुंचते मुझे पसीने छूटने लगे कि मेरा नाम तो आया ही नहीं और पहले पेज पर मेरा नाम होने की मुझे सपने में भी संभावना नहीं लगी। इसलिए मैंने लिस्ट देखना छोड़ दिया और समझा कि मेरा नाम इस लिस्ट में नहीं है और मैं वापस जाने के लिए मुड़ा तभी मेरा एक साथी मुझे बधाई देते हुए बोला की मुबारक हो आपको आई.पी.एस. तो मिल ही जाएगा। मुझे बहुत गुस्सा आया कि ऐसे बुरे समय में भी यह मेरे साथ मजाक कर रहा है। फिर उसने मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए ले जाकर पहले पृष्ठ पर ही लिस्ट में मेरा नाम दिखाया तो मैं अवाक रह गया।

मेरे पिताजी उन दिनों उद्योग भवन में अपने सरकारी दफ्तर में बैठते थे मैं वहां से सीधा अपने पिताजी के दफ्तर पहुंचा और वहां पहुंचकर थोड़ी देर बाद मैंने उन्हें बताया कि मेरा सिविल सर्विसेज परीक्षा उत्तीर्ण हो गई है और मुझे आई.पी.एस. सर्विस मिलने की संभावना है। यह सुनकर पिताजी बोले की मैं अभी अभी जाकर लिस्ट देख कर आया हूं और उसमें मुझे तुम्हारा नाम कहीं नजर नहीं आया। मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि मैं भी अभी लिस्ट देख कर आया हूं और उसमें प्रथम पृष्ठ पर ही मेरा नाम है। मैंने पिताजी को अपने साथ स्कूटर पर बिठाया और यू.पी.एस.सी. जाकर नोटिस बोर्ड पर लगी लिस्ट दिखाई। वहां प्रथम पृष्ठ पर ही मेरा नाम देखकर अत्यंत सुख की अनुभूति हुई। यह पहली बार  था कि मुझे पिताजी को खुश देख कर एक अंदर से संतुष्टि एवं खुशी का भरपूर एहसास हुआ। आज जब कल उनका शारीरिक रूप से साथ मेरे से छूट गया है तो बरबस ही उनकी सब बातें याद आयी और मेरी कलम चल पड़ी…

 


Sandeep Mittal, IPS is a Postgraduate in Cyber Defence and Computer Forensics and hold Doctorate in Cyber Security, Presently functioning as Additional Director General of Police-Government of Tamil Nadu. He taught Cyberspace Investigation to functionaries of Criminal Justice Administration.

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